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चुनाव/राजनीति

कांग्रेस का संकट स्वयं कांग्रेस की ही देन है !

कांग्रेस के खुद से हारने से जीती BJP और AAP

जीत दो प्रकार की होती है, पहली तब जब कोई किसी को हराकर जीते और दूसरी तब जब किसी के हार जाने से कोई जीते आज BJP की और आम आदमी पार्टी की जीत दूसरे प्रकार की जीत है। कांग्रेस के कई मुद्दों पर खुद से हार जाने से मिली जीत 

2 राज्यों तक सीमित कैसे हो गई कांग्रेस?

 कांग्रेस पार्टी की स्थापना से लेकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उसके योगदान तक और उसके बाद भी भारतीय लोकतंत्र में उसकी उपस्थिति को देखते हुए किसी ने भी कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन यह पार्टी सिर्फ 2 राज्यों तक सीमित हो जाएगीएक समय था जब अंग्रेजों के खिलाफ देश की आवाज बना यह दल स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पूरे भारत में अपनी सरकार बनाता है और एक समय आज का है जब यही समृद्ध विरासत वाला दल अब एक अदद विपक्षी पार्टी बने रहने के लिए भी संघर्ष कर रहा है। 

कांग्रेस खुद हार की जिम्मेदार

कांग्रेस की इस विडंबना पूर्ण स्थिति को अगर एक नजर से देखें तो ऐसा लगता है मानो ये केंद्र के सत्ताधारी दल BJP और उसके सर्वमान्य नेता नरेंद्र मोदी के सामने कमजोर हो गई है, उनकी कूटनीति का उत्तर तलाशने में असमर्थ रही है। लेकिन दूसरी ओर यदि गहराई से विचार करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस की ये स्थिति खुद कांग्रेस की ही देन है।

 

पार्टी का रिमोट एक ही परिवार के पास क्यों?

पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस एक ऐसे दल के रूप में परिणत हुई है जो अपने आप में एक विरोधाभास समेटे हुए है। एक ऐसा दल जहां सारा फैसला एक खास परिवार लेता हुआ नजर आता है वहीं दूसरी ओर इसी दल और इसके शीर्ष नेतृत्व की एक स्थिति यह भी दिखाई देती है जहां नेतृत्व अपनी सारी ऊर्जा राज्य के नेताओं के पारस्परिक विवादों को सुलझाने में लगा रहता है।

नेताओं की आपसी लड़ाई, हार पर आई

राज्य के उसके बड़े नेता आपस में ही लड़ पढ़ते हैं और शीर्ष नेतृत्व असमर्थ प्रतीत होता है । कांग्रेस नेतृत्व की इस स्थिति की तुलना करें तो यह परवर्ती मुगलों के समान दिखाई देती है कहने को जिनके पास पूरा भारत था लेकिन वास्तव में उनका साम्राज्य सिर्फ पुरानी दिल्ली से पालम तक ही चलता था।

पंजाब में सिद्धू बनाम कैप्टन का विवाद हो या फिर उत्तराखंड में हरीश रावत बनाम प्रीतम सिंह का विवाद, इन दोनों जगहों पर जहां कांग्रेस की जीत लगभग निश्चित मानी जा रही थी नेताओं के आपसी कलह ने उसे पूरे परिदृश्य से ही बाहर कर दिया। इसी तरह कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं का एक समूह पनप चुका है जिसे संभालना कांग्रेस के लिए लगातार कठिन होता जा रहा है। दिक्कत की बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व दशकों से इन्हीं नेताओं पर आश्रित रहा है। आज स्थिति यह है कि इन नेताओं के असहयोग के कारण कांग्रेस हर जगह असमर्थ दिखती है।

गांधी परिवार से बाहर का नायक क्यों नहीं?

 कांग्रेस को चाहिए कि वह नई पौध को लगातार विकसित करता रहे जिस तरीके से BJP लगातार नए नेताओं को गढ़ती रहती है, उन्हें भविष्य के नायक के रूप में तराशती रहती है उसी तरह यदि कांग्रेस को भी अपने आप को बचाना है तो अपने लिए नए नेताओं को तराशना होगा इसके साथ ही कांग्रेस को यह भी विचार करना होगा कि अब उसके दल का कौन सा पुर्जा पूरी तरह से घिस चुका है, कौन सा पहिया टूट चुका है और किसे राजनीतिक समर से बाहर भेजा जाना चाहिएवर्तमान का नुकसान भविष्य के विनाश से ज्यादा बेहतर होता है 

कांग्रेस के पास अपना कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष क्यों नहीं?

 कांग्रेस के साथ दूसरी समस्या यह है कि कांग्रेस के पास अपना कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। इसका नुकसान यह होता है कि पार्टी कार्यकर्ता के साथ आम जनता कांग्रेस को एक नेतृत्व विहीन दल के रूप में पहचानने लगी है। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपना एक पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त करें। भले ही वह पारंपरिक रूप से गांधी परिवार का ही क्यों न होलेकिन पूर्णकालिक अध्यक्ष की सक्रियता कांग्रेस में स्फूर्ति प्रदान करेगी साथ ही जनता के सामने एक जागृत और जिम्मेदार दल के रूप में दिखाई देगी। अन्यथा अध्यक्ष के अभाव में पार्टी का बिखरना लगातार जारी है बस समय के साथ इसकी गति बढ़ती जाएगी 

कांग्रेस की आक्रामकता खत्म हो गई?

कांग्रेस के साथ तीसरी बड़ी समस्या यह है कि यह समय के साथ अपने आप को नई राजनीति में नहीं ढाल पा रही है। जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी, एक शौचालय का भी उद्घाटन करती है तो वह इस खबर को शीर्ष मीडिया चैनलों तक, आम जनता तक पहुंचाने में कामयाब होती है।  हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, तमाम IIM-IIT आदि की सूत्रधार होकर भी कांग्रेस की छवि एक सुस्त दल की बनी हुई हैअसल में कांग्रेस अपनी नीतियों को जनता को नहीं समझा पा रही है जनता तक उसके न पहुंच पाने का आलम यह है कि आज भारतीय जनता कांग्रेस को जिन घोटालों से जोड़कर देखती है उन घोटालों का ऑडिट करने वाले विनोद राय कांग्रेस के नेताओं से बिना शर्त माफी मांग चुके हैं। उन घोटालों में भारतीय जनता पार्टी किसी भी कांग्रेसी नेता को दोषी साबित नहीं कर पाई है। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस अपनी सुस्त नीतियों के कारण जनता तक यह बात पहुंचाने में नाकाम रही है और घोटाले का दाग लेकर हर चुनाव में पहुंच जाती है 

सियासी एजेंडा सेट करने में फेल काग्रेस

 कांग्रेस के साथ चौथी बड़ी समस्या यह है कि वह अभी तक भारतीय जनता पार्टी की नीतियों की काट खोजने में असमर्थ रही है। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पलायन जैसी चीजों को आज भी कांग्रेस की देन माना जाता है जबकि वास्तविकता यह है कि यह लगभग हर सरकार में रही है कांग्रेस बेरोजगारी, धर्मनिरपेक्षता आदि को मुद्दा बनाने में असमर्थ रही है, जबकि वहीं भाजपा अपने एजेंडे को हर बार वोट पाने के हथियार के रूप में प्रयुक्त कर लेती है। 

 भले ही सत्ताधारी दल BJP में भी एक व्यक्ति, एक चेहरा जैसी स्थितियां पैदा हो चुकी है जैसा कांग्रेस में भी है लेकिन कांग्रेस के साथ एक समस्या यह है कि वह अपनी छवि नहीं बदल पा रही है। जहां BJP अपने नेता को आम जनता से जोड़ कर दिखाने में कामयाब रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस जनता की मानसिकता को नहीं बदल पा रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को समझना चाहिए कि उसे पार्टी कैडर में जमीन में पनपे नेताओं को स्थान देना ही होगावर्तमान नेतृत्व को समझना चाहिए कि नए नेता नई ऊर्जा लेकर आएंगे। यह समय मिलकर काम करने का है यह समय उत्तरदायित्व के बंटवारे का हैजनता की मानसिकता को बदलने का है। 

BJP ने बड़ी चतुराई के साथ कांग्रेस के सबसे बड़े नेता की छवि को अगंभीर व्यक्ति की छवि के रूप में परिणत कर दिया है इसका नतीजा यह होता है कि कई बार मोदी द्वारा की गई उसी गलती को लोग सामान्य मानवीय भूल मान लेते हैं जबकि राहुल गांधी की गलती को उनकी मेधा से जोड़ कर देखते हैं कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने नेता की छवि को दुरुस्त करें जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी पूरी ऊर्जा के साथ अपने नेता की छवि को हर समय अपडेट करती रहती है उसी तरह कांग्रेस को भी अपने नेता की छवि को मजबूत करना होगा। इसके लिए उन्हें सत्ताधारी दल से लड़ने के बजाय अपने नए लक्ष्यों को तलाशना होगा  

 कांग्रेस इन सब के साथ BJP से एक मोर्चे पर लोहा लेना है, जहां आम आदमी पार्टी भी उसके प्रतिद्वंद्वी के रुप में खड़ी है। असल में इस समय भारतीय राजनीति में सबसे ऊंचा स्थान रखने वाले दल BJP और सबसे तेजी से उभर रहे दल आम आदमी पार्टी के पास विजिटिंग कार्ड के रूप में अपना अपना एक विकास का मॉडल है। दूसरे शब्दों में कहें तो BJP के पास गुजरात मॉडल है तो वहीं केजरीवाल के पास दिल्ली मॉडल। कांग्रेस को भी अपने लिए एक ऐसे  विकास मॉडल को तैयार करना होगा जो उसकी नई राजनीतिक पारी के लिए नया विजिटिंग कार्ड साबित हो सके। क्योंकि बदलती भारतीय राजनीतिक स्थितियों में अब कांग्रेस के पास उदाहरण के लिए बहुत कुछ नहीं है। विरासत एक समय के बाद वोट में तब्दील नहीं होता आज की पीढ़ी के लिए उसे नए उदाहरणों को तैयार करना ही होगा। तभी वह भाजपा और आम आदमी पार्टी का मुकाबला कर पाएगी। इस समय कांग्रेस के पास अभी भी दो राज्य बचे हैं राजस्थान और छत्तीसगढ़ साथ ही पूरे भारत के वोट शेयर की बात करें तो कांग्रेस के पास अभी भी 21% का वोट शेयर है कहने का अर्थ यह है कांग्रेस के पास अपने विकास मॉडल को विकसित करने के लिए अभी भी अवसर है। 

 इसके साथ ही साथ कांग्रेस को यह समझना भी होगा कि वह कभी मोदी की आलोचना कर के आगे नहीं बढ़ सकती, उसे आगे बढ़ने के अपनी नई राजनितिक यात्रा आरंभ करनी ही होगी। उसे भारतीय राजनीति में कुछ नया लाना होगा। नए मानक स्थापित करने होंगे, नए मूल्यों से सबका परिचय कराना होगा। 

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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