प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी को फेल प्रोडक्ट बताया तो इस पर कांग्रेस के अंदर से भी राहुल के खिलाफ बयान आने शुरू हो गए। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा, “कांग्रेस को इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि 2014 और 2019 में राहुल गांधी कांग्रेस का चेहरा थे, वे बुरी तरह से हारे हैं। कांग्रेस पार्टी को सोचना जरूरी है कि चुनाव का चेहरा कौन हो…”

‘गांधी-नेहरू परिवार से परिवार से बाहर देखे कांग्रेस’
सोमवार को 17वें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से इतर पत्रकारों से शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि कांग्रेस को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि साल 2014 और 2019 में राहुल गांधी बेहद बुरे तरीके से हारे थे। वह कांग्रेस का चेहरा थे। दो लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। अगर किसी नेता विशेष के नेतृत्व में कोई पार्टी लगातार हार रही है तो उसके बारे में सोचना जरूरी है। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि पार्टी का चेहरा कौन होना चाहिए। अब समय आ गया है कि कांग्रेस पार्टी को अपने नेतृत्व के लिए नेहरू-गांधी परिवार से बाहर देखना चाहिए।

राहुल गांधी का आकलन- कैसे नेता हैं ?
कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का एक नेता के रुप में वो कैसा आकलन करती हैं, इस सवाल के जवाब में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा, ‘राुल गांधी को परिभाषित करना मेरा का म नहीं है। किसी भी व्यक्ति को परिभाषित करना संभव नहीं है। अगर कोई मुझसे मेरे पिता को परिभाषित करने के लिए कहे तो मैं अपने पिता की भी व्याख्या नहीं कर पाऊंगी’। नेतृत्व के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं को ही इसका जवाब देना होगा।
‘मेरे BJP में जाने की बात अफवाह, हार्ड कोर कांग्रेसी हूं’
शर्मिष्ठा ने कहा कि आज मेरे पिता होते तो कांग्रेस के मौजूदा हालत से काफी परेशान होते। यह सिर्फ मेरे ही नहीं, हर कांग्रेसी नेता के मन के हालात हैं। मेरे BJP में जाने की बात अफवाह है, मैं कहीं नहीं जा रही हूं। मैं हार्ड कोर कांग्रेसी हूं।
कांग्रेस को मजबूत कैसे किया जाए?
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि कांग्रेस देश में अब भी मजबूत मुख्य विपक्षी दल है। इसका स्थान निर्विवाद है, लेकिन यह प्रश्न है कि इसे मजबूत कैसे किया जाए? इस पर विचार करना पार्टी नेताओं का काम है। उन्होंने कहा कि पार्टी में लोकतंत्र की बहाली, सदस्यता अभियान, पार्टी के भीतर संगठनात्मक चुनाव और नीतिगत निर्णयों की प्रक्रिया में हर स्तर पर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को शामिल करने की जरूरत है, जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी डायरी में लिखा है। इसके अलावा कोई जादू की छड़ी नहीं है।
लोकतंत्र में अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं
पूर्व राष्ट्रपति की बेटी ने आगे कहा कि लोकतंत्र में अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं, आप उनकी विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस विचारधारा का अस्तित्व गलत है। इसलिए बातचीत होना जरूरी है। जब मेरे पिता सक्रिय राजनीति में थे, तो उन्हें आम सहमति बनाने वाला माना जाता था, क्योंकि संसद में गतिरोध के दौरान पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ चर्चा करने का उनका गुण था। लोकतंत्र सिर्फ बोलने का मतलब नहीं है, दूसरों को सुनना भी बहुत जरूरी है। उनकी विचारधारा थी कि लोकतंत्र में संवाद होना चाहिए।