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डिंपल यादव को ‘यादव’ ही हराएंगे?

यूपी की सबसे हॉट सीटों में से एक मैनपुरी की चुनावी महाभारत का ट्रेलर आने लगा है। मैनपुरी की लड़ाई एक कदम और आगे बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही है, क्योंकि मैनपुरी में नई सियासी हवा चल पड़ी है। यादवलैंड कहे जाने वाले इस लोकसभा क्षेत्र में अब यादव वोटर्स दो गुट में बंट गए हैं। एक गुट मोदी-मोदी कर रहा है जबकि दूसरा गुट मुलायम परिवार के समर्थन में डटा है।

  • मैनपुरी में 35 प्रतिशत यादव वोट है तो जरूर, लेकिन ये घोसी यादव और कमरिया यादव के बीच बंटा हुआ है।
  • अखिलेश यादव का परिवार कमरिया गोत्र का है।
  • लेकिन मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र के यादवों में करीब 70 फीसदी घोसी हैं, जो अब मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं। अखिलेश का विरोध कर रहे हैं।
  • अखिलेश के कमरिया गोत्र वाले 30 फीसदी ही हैं।

अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को समाजवादी पार्टी के लिए सबसे सुरक्षित सीट से उतारने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन मैनपुरी के यादव वोटों का जो बिखराव नजर आ रहा है उससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुलायम फैमिली के लिए सबसे सेफ सीट मानी जाने वाली मैनपुरी में भी डिंपल यादव की राह आसान नहीं रहने वाली।

मैनपुरी के यादवों का बदलता मूड और ये आंकड़ा समाजवादी पार्टी और खासकर अखिलेश-डिंपल के लिए बड़ा सिरदर्द है। सवाल उठ रहे हैं कि अखिलेश ने डिंपल को जो सबसे सेफ सीट दी है, लेकिन

  • क्या वाकई इस सीट पर डिंपल की जीत की गारंटी है?
  • डिंपल यादव ‘कमरिया’ और ‘घोसी’ की लड़ाई में मैनपुरी में फंस तो नहीं गई हैं?

 

मुलायम सिंह यादव और मैनपुरी का अटूट रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। शायद इसीलिए 3 दशक में मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम का तिलिस्म कोई तोड़ नहीं पाया था। लेकिन, अब ये तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है।

यादवों में फूट के लिए मैनपुरी के घोसी यादव मुलायम परिवार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका आरोप है कि मुलायम के परिवार ने सिर्फ कमरिया यादवों को ही आगे बढ़ाया, जबकि घोसी यादवों का उत्पीड़न किया गया। मैनपुरी के घोसी और कमरिया यादवों को जोड़ने का मंत्र मुलायम के पास था। तो क्या अखिलेश इसमें फेल हो गए हैं? क्या मैनपुरी का ये चुनाव सैफई के यादव परिवार की नई सियासी पटकथा लिखेगा?

सवाल ये भी है कि क्या इस सियासी हवा के रुख को मोड़ पाएंगी डिंपल यादव? क्या बदलते सियासी समीकरणों के बीच 24 के इस महामुकाबले में सैफई के यादव परिवार की साख को बचा पाएंगी डिंपल यादव? सवाल कई हैं जिनके जवाब चुनाव नतीजों में आएंगे। लेकिन, इस बार मैनपुरी में डिंपल यादव के लिए इस बार की लड़ाई अलग है। क्योंकि इस बार माहौल सहानुभूति लहर वाला नहीं। इस बार डिंपल की टक्कर मोदी लहर से है।

मैनपुरी का मूड डिंपल और उनकी पार्टी के खिलाफ नजर आ रहा है। मैनपुरी का सियासी इतिहास ये भी रहा है कि जब-जब इन इलाकों में गोत्र के हिसाब से मतदान हुआ तब-तब समाजवादी पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वैसे भी डिंपल यादव का सियासी विरासत को बचाने का रिकॉर्ड देखें तो वो दमदार नजर नहीं आता। डिंपल यादव अपने सियासी जीवन में 4 बार चुनाव लड़ चुकी हैं, जिसमें वो 2 बार जीती हैं और दो बार उन्हें हार मिली है।

  • 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर उपचुनाव हारीं
  • 2012 में कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव में निर्विरोध चुनी गईं
  • लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में SP-BSP का संयुक्त उम्मीदवार होने के बावजूद कन्नौज सीट गंवा बैठीं
  • 2022 में मैनपुरी से मुलायम के निधन के बाद उपचुनाव चुनाव जीतकर तीसरी बार लोकसभा पहुंची

डिंपल अपने पति अखिलेश की विरासत फिरोजाबाद और कन्नौज को तो संभालकर नहीं रख सकीं और अब दांव पर ससुर मुलायम की विरासत मैनपुरी है।

दांव पर सिर्फ मैनपुरी ही नहीं है, अखिलेश की पार्टी के लिए तो 2019 का प्रदर्शन भी दोहरा पाना मुश्किल नजर आ रहा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से सियासी समीकरण बदले हैं उसने समाजवादी पार्टी को अलर्ट मोड में ला दिया है। क्योंकि, बीजेपी ने हर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरणों से इतर अपने समर्थक लाभार्थी वोटबैंक को भी खड़ा कर लिया है। ये वो वोटर हैं जिन्हें सरकारी योजनाओं के जरिए बड़ा फायदा मिला है और BJP को उम्मीद है कि इनके वोट बीजेपी को ही मिलेंगे। लिहाजा अखिलेश की परेशानी यादव वोटबैंक में सेंधमारी रोकने से लेकर चौतरफा बढ़ गई है।

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